पीलीभीत के इलाबांस में है प्राचीन भारत की अनमोल धरोहर

अनुराग शुक्ला (यात्रा 3) 🚸🔅

उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में बीसलपुर विधानसभा का गांव इलाबांस देवल 10वीं शताब्दि के भारत का आईना है। लोधी-राजपूतों की आस्था का बड़ा केन्द्र रहा ये क्षेत्र एक किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। यहां 52 विशाल टीले थे। अब इनमें से महज एक ही टीला बचा है। आज भी यहां चारों तरफ अनमोल साक्ष्य बिखरे पड़े हैं। पुरातत्व विभाग, सरकार, स्थानीय जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का शिकार इतिहास का यह समृद्ध पन्ना तेजी से नष्ट हो रहा है। यहां आज भी खेतों और टीलों में देवी-देवताओं की मूर्तियां मिलने का सिलसिला जारी है। इस अद्भुत गांव की यात्रा में मेरे साथ वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप तिवारी, रुहेलखंड के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कमला राम बिंद और फोटो जर्नलिस्ट दीप चंद तिवाड़ी थे।


फोटो : दीपचंद तिवाड़ी

कहानियों और संस्मरणों के बीच ओझल होता इतिहास 

इलाबांस में भ्रमण के दौरान जहां नजर गई वहीं कुछ न कुछ ऐतिहासिक दिखा। खेतों की पगडंडियों पर घूमते हमलोग जब 52 टीलों में से एक मात्र बचे टीले के पास पहुंचे तो भौचक रह गए। यहां अज्ञात लोगों ने खुदाई कर रखी थी। उन गड्ढों से झांकती ऐतिहासिक ईंटे अपनी दास्तान खुद बयां कर रही थी। आसपास खड़े कुछ लड़कों से जानकारी करनी चाही तो कोई कुछ बताने को राजी नहीं था। एक अधेड़ ने बस इतना कहा कि लोग यहां खजाना होने की बात करते रहते हैं। इससे अंदाज लगाया जा सकता है कि संरक्षण के आभाव में कैसे शानदार इतिहास मिट्टी में मिल रहा है। वहां से लौटते समय खेतों में नजर गई तो हर तरफ प्राचीन ईंटें बिखरी दिखीं।



इलाबांस के मंदिर में प्रमुख मूर्ति भगवान विष्णु के वाराह रूप की है, जिसे सिंदूर से पोत दिया गया है। साथ में इतिहास का वर्णन करती शिलापट्ट। 


बदहाल हो रहीं मूर्तियां, पत्थर के लिखित दस्तावेज का भी क्षरण
इलाबांस में भगवान शिव और माता पार्वती के दो मंदिर हैं। लोधी-राजपूत परिवारों से जुड़े लोग महादेव को अपना कुलदेवता और मां पार्वती को कुलदेवी मानते हैं। इस मंदिर में प्रमुख मूर्ति भगवान विष्णु के वाराह रूप है। लेकिन अज्ञानता के कारण वर्तमान में इस मूर्ति को वनदेवी मानकर पूजा की जाती है। मूर्ति को तेल और सिंदूर से पोत दिया गया है। इसके कारण मूर्ति के पत्थर का लगातार क्षरण हो रहा है। इतना ही नहीं मूर्ति के ठीक सामने दीवार पर एक पत्थर लगा है जिसमें दसवीं शताब्दि के इतिहास को उकेरा गया है। इस पत्थर के ठीक ऊपर दीपक रखे जाने की जगह है। वहां भक्त तेल के दीपक जलाते हैं और इसके कारण यह पत्थर का लिखित दस्तावेज भी अब बदहाल हो चुका है। अंग्रेज लेखक जेम्स प्रिन्सेप की किताब में प्रकाशित पत्थर की ये तस्वीर बहुत अच्छी हालत में है।
फोटो : दीपचंद तिवाड़ी

विक्रम सम्वत 1049 में हुआ मंदिर का निर्माण  
रुहेलखंड विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कमला राम बिंद के अनुसार मंदिर का निर्माण विक्रम सम्वत 1049 यानी दसवीं शताब्दी में क्षेत्र के मंडलाधिपति लल्ला और उनकी पत्नी लक्ष्मी ने किया था। मंदिर में जो अभिलेख मिल रहे हैं उनमें राजपूत शासकों की वंशावली और उसकी राजनीतिक गतिविधियों का उल्लेख है। मंदिर और घरों का निर्माण पक्की ईंटों से किया गया है। उस दौर में नक्काशी का काम भी बेहद उम्दा था। इलाबांस देवल गांव में प्राचीन मंदिरों के अवशेष खंडित या नष्ट हो चुके हैं। मगर यहां खेतों में जुताई और खोदाई के दौरान तमाम मूर्तियों के अवशेष मिलते रहते हैं। खेतों से मिली मूर्तियों को तमाम लोगों ने अपने घरों में रखा है।

फोटो : दीप चंद तिवाड़ी

1829 में इतिहासकार एसएच बुल्डर्सन ने सबसे पहले बताया 
इलाबांस देवल के बारे में सबसे पहले 1829 में अंग्रेज इतिहासकार एसएच बुल्डर्सन ने लिखा था। इसके बाद 1837 में जेम्स प्रिन्सेप, 1871 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम और 1892 में ब्यूहलर ने मंदिर के बारे में लिखा। अंग्रेजों के समय में इस पर खूब काम हुआ मगर आजादी के बाद प्रदेश और देश की सरकार ने ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण इलाबांस की चिंता नहीं की। असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कमला राम बिंद के अनुसार मंदिर में जो अभिलेख मिल रहे हैं उनमें राजपूत शासकों की वंशावली और राजनीतिक गतिविधियों का उल्लेख है। मंदिर और घरों का निर्माण पक्की ईंटों से किया गया है।

इलाबांस के मंदिर पिरसर में रखी मूर्तियों के बारे में बताते रुहेलखंड विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कमला राम बिंद।

ग्रामीणों के घरों में रखी हैं ऐतिहासिक मूर्तियां 
गांव में घूमते हुए हम पहुंचे एक युवक के घर। उसने बताया कि खेत में जुताई के दौरान भगवान गणेश की मूर्ति मिली थी जिसे वह घर ले आया। मूर्ति कई टुकड़ों में थी तो उसे जोड़कर रखा। युवक के अनुसार कई लोग उससे यह मूर्ति देने को कह चुके हैं लेकिन वह किसी को देना नहीं चाहता।

खेत में जुताई के दौरान मिली भगवान गणेश की मूर्ति के बारे में जानकारी देता युवक। 


यह टीम कर रही शोध
इस ऐतिहासिक धार्मिक स्थल का सर्वे इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर श्याम बिहारी लाल की अगुआई में प्रोफेसर विजय बहादुर सिंह यादव, डॉ. अनूप रंजन मिश्र, डॉ. कमला रामबिंद कर रहे हैं। इस टीम का कहना है कि मौके पर अब मंदिर के गिने-चुने दस्तावेज ही बचे हैं। जो दस्तावेज हैं उन पर गांव के लोग दूध, सिंदूर और बताशे चढ़ा रहे हैं जिससे उनका तेजी से क्षरण हो रहा है।

इलाबांस में प्राचीन टीले से निकली ईंट दिखाते रुहेलखंड विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कमला राम बिंद।


कुछ तस्वीरें


इलाबांस गांव में स्थित एतिहासिक शिवमंदिर का यह आकर्षक प्रचीन पंचमुखी शिवलिंग।

मंदिर के दरवाजे की ढेहरी पर टांके गए प्रचानी सिक्के।
इलाबांस में 52 विशाल टीलों में से बचा मात्र एक टीला। इसे भी लोग खजाने की लालच में खोद रहे हैं।


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