अनुराग शुक्ला (यात्रा 1)
आसमान छूते पहाड़, हिम श्रृंखलाएं, मीलों फैली हरियाली, सागर की लहरें, उगते -डूबते सूरज का अनुपम सौंदर्य, रहस्यों से भरे जंगल, बलखाती नदियां... हर तरफ शानदार नजारे... क्या कुछ नहीं दिया है प्रकृति ने हमें। पर जीवन की तमाम जिम्मेदारियों से कुछ समय चुराकर हम इन जगहों के लिए निकल पाएं ऐसा बेहद कम हो पाता है।
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही रहा लेकिन हमारे साथी फोटो जर्नलिस्ट रोहित उमराव ने मेरी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति को कुरेदना शुरू कर दिया। रोहित भाई जितने शानदार फोटोग्राफर उससे कहीं जबरदस्त उनकी शख्सियत। ज्ञान के खजाने से समृद्ध रोहित की लेखनी भी क्या खूब। उन्होंने वक्त-बेवक्त न सिर्फ घूमने के लिए प्रेरित करना शुरू किया, बल्कि मुझे कई लाजवाब लोगों से मिलवाया भी। नवंबर 2017 में उन्होंने किसी काम से हल्द्वानी चलने को कहा। उनकी योजनाओं से अनभिज्ञ मैंने हामी भर दी। मेरी नाइट शिफ्ट होती है रात तीन बजे ऑफिस से अपने रूम पर पहुंचा। बिस्तर पर आया तो अंगुलियां मोबाइल से उलझ गईं। सुबह छह बजे रोहित भी पहुंच गए। जल्दी-जल्दी मैं तैयार हुआ और हम दोनों पैदल ही पहुंच गए पास के इज्जतनगर रेलवे स्टेशन। आप सोच रहे होंगे मैं सोया कब? अरे सोया तो मैं ट्रेन में। सुबह आठ बजे रोहित ने मुझे जगाया। थोड़ी देर में लालकुआं पहुंचकर हमने ट्रेन वहीं छोड़ दी। स्टेशन के बाहर आए तो एक नाश्ते की दुकान में घुस गए। मुंह हाथ धोकर दही के साथ जलेबियां खाईं। आहा! मजा ही आ गया। करीब-करीब इलाहाबादी स्वाद।
शानदार नाश्ते के बाद हम ऑटो से हल्द्वानी निकल गए।वहां पहुंचकर पता चला कि रोहित भाई को बहन की शादी का कार्ड बांटना है। दोपहर दो बजे तक कई लोगों के घर गए और कार्ड देकर उन्हें निमंत्रित किया।
असली रहस्य तो दोपहर दो बजे के बाद खुला। रोहित ने कहा कि नैनीताल चलना है। अरे... मेरी तो आंखें चमक गई। पता चला कि हल्द्वानी से ज्यादा दूर नहीं है। यह जानकर मजा आ गया। हमने वहां से उत्तराखंड की बस ली और निकल गए सपनों की यात्रा पर। (बता दूं कि अबतक पहाड़ों से मेरा नाता सिर्फ तस्वीरों और दोस्तों की बताई जानकारियों तक ही था)
आसमान छूते पहाड़, हिम श्रृंखलाएं, मीलों फैली हरियाली, सागर की लहरें, उगते -डूबते सूरज का अनुपम सौंदर्य, रहस्यों से भरे जंगल, बलखाती नदियां... हर तरफ शानदार नजारे... क्या कुछ नहीं दिया है प्रकृति ने हमें। पर जीवन की तमाम जिम्मेदारियों से कुछ समय चुराकर हम इन जगहों के लिए निकल पाएं ऐसा बेहद कम हो पाता है।
मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही रहा लेकिन हमारे साथी फोटो जर्नलिस्ट रोहित उमराव ने मेरी घुमक्कड़ी प्रवृत्ति को कुरेदना शुरू कर दिया। रोहित भाई जितने शानदार फोटोग्राफर उससे कहीं जबरदस्त उनकी शख्सियत। ज्ञान के खजाने से समृद्ध रोहित की लेखनी भी क्या खूब। उन्होंने वक्त-बेवक्त न सिर्फ घूमने के लिए प्रेरित करना शुरू किया, बल्कि मुझे कई लाजवाब लोगों से मिलवाया भी। नवंबर 2017 में उन्होंने किसी काम से हल्द्वानी चलने को कहा। उनकी योजनाओं से अनभिज्ञ मैंने हामी भर दी। मेरी नाइट शिफ्ट होती है रात तीन बजे ऑफिस से अपने रूम पर पहुंचा। बिस्तर पर आया तो अंगुलियां मोबाइल से उलझ गईं। सुबह छह बजे रोहित भी पहुंच गए। जल्दी-जल्दी मैं तैयार हुआ और हम दोनों पैदल ही पहुंच गए पास के इज्जतनगर रेलवे स्टेशन। आप सोच रहे होंगे मैं सोया कब? अरे सोया तो मैं ट्रेन में। सुबह आठ बजे रोहित ने मुझे जगाया। थोड़ी देर में लालकुआं पहुंचकर हमने ट्रेन वहीं छोड़ दी। स्टेशन के बाहर आए तो एक नाश्ते की दुकान में घुस गए। मुंह हाथ धोकर दही के साथ जलेबियां खाईं। आहा! मजा ही आ गया। करीब-करीब इलाहाबादी स्वाद।
शानदार नाश्ते के बाद हम ऑटो से हल्द्वानी निकल गए।वहां पहुंचकर पता चला कि रोहित भाई को बहन की शादी का कार्ड बांटना है। दोपहर दो बजे तक कई लोगों के घर गए और कार्ड देकर उन्हें निमंत्रित किया।
असली रहस्य तो दोपहर दो बजे के बाद खुला। रोहित ने कहा कि नैनीताल चलना है। अरे... मेरी तो आंखें चमक गई। पता चला कि हल्द्वानी से ज्यादा दूर नहीं है। यह जानकर मजा आ गया। हमने वहां से उत्तराखंड की बस ली और निकल गए सपनों की यात्रा पर। (बता दूं कि अबतक पहाड़ों से मेरा नाता सिर्फ तस्वीरों और दोस्तों की बताई जानकारियों तक ही था)
कुछ दूर पर दरकते पहाड़ की निशानियां देखकर वहां की भयावहता का अहसास हुआ। बस की खिड़की से दूर घरों के झुरमुट देखकर लगा वहां तक लोग पहुंचते कैसे होंगे? रोजमर्रा की जरूरतों के सामान कैसे उपलब्ध होते होंगे? वाकई बेहद मुश्किलों की जिंदगी होती होगी। रोहित से पूछने पर पता चला कि अभी तो कुछ नहीं, आगे खूबसूरत नजारों के साथ ही आपको और भयावह दृश्य दिखेंगे। पहाड़ों में जीवन बेहद कठिन है फिर भी लोग यहां डटे रहते हैं।
घुमावदार सड़क से होते हुए करीब एक घंटे बाद बस एक मोड़ पर रुकी। कंडक्टर ने आवाज लगाई अभी बस रुकेगी फ्रेस हो सकते हैं। रोहित हमें लेकर सामने एक छोटी सी दुकान पर पहुंच गए। वहां वे दुकानदार से कुछ बातकर मेरे पास टेबल पर आ बैठे। दो मिनट बाद ही दुकानदार हाथ में तीन प्लेट लिए आया। एक में आलूदम जैसा कुछ था और दो में रायता। सवाल करते हुए मैंने कहा रायता...? रहस्यमयी मुस्कान लिए रोहित बोले खाइए तो। और इसके बाद जैसे ही मैंने रायता खाया... मुंह के साथ ही नाक तक झनझना गया। सरसों के चटक झार ने अनोखे और लाजवाब स्वाद से परिचय कराया।रायता और आलूदम निपटाकर बस में आ बैठे। पांच मिनट में हम फिर अपनी यात्रा पर निकल गए। अगले करीब 45 मिनट में हम नैनीताल झील के सामने थे। आंखों को जैसे भरोसा ही नहीं हुआ। खुशी से कुछ बोलते नहीं बन रहा था। पर घर वालों को साथ नहीं ला पाने का मलाल भी था।
खैर वहां से हम आगे बढ़े और मॉल रोड घूमते हुए मल्लीताल स्थित संजय नागपाल जी के घर पहुंचे। रोहित उमराव के मित्र संजय जी पत्रकार हैं और उनका रत्नों व आर्टिफीसियल ज्वैलरी का भी काम है। उन्होंने खूब सत्कार किया। कुछ देर में हम संजयजी की बाइक लेकर हिमालय दर्शन प्वाइंट के लिए निकल पड़े। नैनी झील से ऊपर की ओर स्थित इस प्वाइंट से हिम दर्शन के साथ ही कुदरत के बेहद शानदार नजारे दिखते हैं। लेकिन पहाड़ों पर शाम जल्दी होती है और हमारे वहां पहुंचते-पहुंचते रोशनी कम हो गई। ऐसे में वहां से ज्यादा कुछ साफ नहीं दिख रहा था। हम मायूस होकर लौट पड़े। हालांकि इस अफरातफरी वाले इस यात्रा में हमने सुसाइड प्वाइंट, कैमेल बैक जरूर देख लिया।
पहाड़ पर बाइक से ऊपर जाते समय तो ठीक था लेकिन नीचे उतरते समय एकदम बगल दिख रही खाइयां डराने लगीं। मैं पहली बार ऐसे सफर पर था तो मुझे कुछ ज्यादा ही डर लग रहा था। बाइक चला रहे रोहित ने मेरे डर को भांपकर चुहलबाजी शुरू कर दी। जॉब के दौरान वे हल्द्वानी और नैनीताल में काफी समय रहे थे। इसका फायदा उठाकर खाइयों में वाहनों के गिरने के हादसे गिनाने लगे।
बातचीत करते-करते अचानक रोहित ने बाइक मुख्य सड़क से एक कच्चे रास्ते पर मोड़ ली। बताया कि हम पद्मश्री और मशहूर फोटोग्राफर, पर्वतारोही, लेखक अनूप शाह जी के घर 'अयारपाटा' चल रहे हैं। थोड़ी ही देर में अंधेरे को पार करती बाइक एक छोटे से बेहद खूबसूरत घर के सामने रुक गई। घर का डोरबेल दबाते ही घर के अंदर चिड़िया की चहचहाहट गूंज उठी। जरा सी देर में मिसेज शाह ने दरवाजा खोला। नमस्कार-प्रणाम के बाद उन्होंने हमें अंदर आने को कहा। करीने से सजाई गई गैलरी पार कर हम तरह-तरह की कलाकृतियों से सुसज्जित एक बेहद आकर्षक कमरे में पहुंचे। वहां लकड़ी की कलात्मक टेबल पर एक प्रतिमा (संभवत: कांसे की बनी) ने सबसे पहले ध्यान खींचा। प्रचीन शैली की नृत्य मुद्रा में बनी यह प्रतिमा बहुत खूबसूरत लग रही थी। कमरे में लकड़ी की नक्काशी वाली आलमारी, फर्नीचर, टेबल भी अच्छे लगे। पता चला कि पहाड़ के घरों में लकड़ी का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनका बेहद कलात्मक तरीके से प्रयोग किया जाता है। मेरे ठीक बगल टेबल पर रखी संगमरमर की छोटी सी लोमड़ी ने भी ध्यान खींचा। बनाने वाले ने बारीकी का पूरा ख्याल रखा। कमरे की खूबसूरती से प्रभावित हम और रोहित बातें कर ही रहे थे कि मिसेज शाह चाय लेकर आ गईं। उन्होंने बताया कि अनूपजी कहीं ट्रैकिंग पर गए हैं। हमने चाय पी और कार्ड देकर चलने को हुए तभी शाहजी के पुत्र आ गए। एक-दूसरे से परिचय और हालचाल के बाद हम अनूपजी से न मिल पाने का मलाल लिए हम लौट गए।
संजय नागपाल जी के घर बाइक छोड़कर हम मॉल रोड की ओर आ गए। तब तक अंधेरा गहरा चुका था लेकिन मॉल रोड की चकाचौंध में बेअसर सा दिख रहा था। आगे की योजना पर बात करते-करते रोहित ने कहा कि अब हम चलेंगे रानीखेत। हे भगवान... सरप्राइज पर सरप्राइज। पहाड़ी रास्तों से अनजान मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि लोगों ने मना किया कि रात को मत जाइए... तो थोड़ा डर लगा पर 'शहरी जेल' से भागेे घुमक्कड़ ये मानते कैसे। तो हम एक कार लेकर भवाली पहुंचे। तब तक रात के आठ बज गए। वहां लगभग सन्नाटा, कोई वाहन ही नहीं। अब क्या किया जाए? यही सोच रहे थे कि महादेव ने कृपा की और एक सरकारी मार्शल गाड़ी हमारी ओर आती दिखी। रोहित ने हाथ दिया और वो रुक गई। चालक अपने अफसर को नैनीताल छोड़कर रानीखेत लौट रहा था। बस फिर क्या, हम गाड़ी पर सवार हो लिए और निकल पड़े।
थोड़ी देर के बाद ही दिनभर की थकान मुझपर तारी हो गई। पहाड़ के घुमावदार रास्तों पर झूले की तरह झूलती गाड़ी में मैं कब नींद के आगोश में चला गया पता नहीं। रात करीब 11 बजे रोहित ने जगाया। कुछ देर में ही गाड़ी रुकी और हम उतर गए। वहां घुप्प अंधेरा, हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
रोहित ने बताया कि सीपी सिंह सर के घर चल रहे हैं हम लोग। हालांकि हम दिन में हल्द्वानी स्थित उनके घर कार्ड देने गए थे। लेकिन ये मैं तब समझ सका जब मैं उनसे मिला। सिंह सर रानीखेत में एक डिग्री कॉलेज में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर हैं। हल्द्वानी में परिवार रहता है।
पहाड़ पर बाइक से ऊपर जाते समय तो ठीक था लेकिन नीचे उतरते समय एकदम बगल दिख रही खाइयां डराने लगीं। मैं पहली बार ऐसे सफर पर था तो मुझे कुछ ज्यादा ही डर लग रहा था। बाइक चला रहे रोहित ने मेरे डर को भांपकर चुहलबाजी शुरू कर दी। जॉब के दौरान वे हल्द्वानी और नैनीताल में काफी समय रहे थे। इसका फायदा उठाकर खाइयों में वाहनों के गिरने के हादसे गिनाने लगे।
नैनीताल के हिमालय दर्शन प्वाइंट के पास। |
बातचीत करते-करते अचानक रोहित ने बाइक मुख्य सड़क से एक कच्चे रास्ते पर मोड़ ली। बताया कि हम पद्मश्री और मशहूर फोटोग्राफर, पर्वतारोही, लेखक अनूप शाह जी के घर 'अयारपाटा' चल रहे हैं। थोड़ी ही देर में अंधेरे को पार करती बाइक एक छोटे से बेहद खूबसूरत घर के सामने रुक गई। घर का डोरबेल दबाते ही घर के अंदर चिड़िया की चहचहाहट गूंज उठी। जरा सी देर में मिसेज शाह ने दरवाजा खोला। नमस्कार-प्रणाम के बाद उन्होंने हमें अंदर आने को कहा। करीने से सजाई गई गैलरी पार कर हम तरह-तरह की कलाकृतियों से सुसज्जित एक बेहद आकर्षक कमरे में पहुंचे। वहां लकड़ी की कलात्मक टेबल पर एक प्रतिमा (संभवत: कांसे की बनी) ने सबसे पहले ध्यान खींचा। प्रचीन शैली की नृत्य मुद्रा में बनी यह प्रतिमा बहुत खूबसूरत लग रही थी। कमरे में लकड़ी की नक्काशी वाली आलमारी, फर्नीचर, टेबल भी अच्छे लगे। पता चला कि पहाड़ के घरों में लकड़ी का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनका बेहद कलात्मक तरीके से प्रयोग किया जाता है। मेरे ठीक बगल टेबल पर रखी संगमरमर की छोटी सी लोमड़ी ने भी ध्यान खींचा। बनाने वाले ने बारीकी का पूरा ख्याल रखा। कमरे की खूबसूरती से प्रभावित हम और रोहित बातें कर ही रहे थे कि मिसेज शाह चाय लेकर आ गईं। उन्होंने बताया कि अनूपजी कहीं ट्रैकिंग पर गए हैं। हमने चाय पी और कार्ड देकर चलने को हुए तभी शाहजी के पुत्र आ गए। एक-दूसरे से परिचय और हालचाल के बाद हम अनूपजी से न मिल पाने का मलाल लिए हम लौट गए।
टिफिन टॉप के पास रोहित (दाएं) और मैंने सेल्फी लेकर खूबसूरत पल को यादगार बनाया। |
संजय नागपाल जी के घर बाइक छोड़कर हम मॉल रोड की ओर आ गए। तब तक अंधेरा गहरा चुका था लेकिन मॉल रोड की चकाचौंध में बेअसर सा दिख रहा था। आगे की योजना पर बात करते-करते रोहित ने कहा कि अब हम चलेंगे रानीखेत। हे भगवान... सरप्राइज पर सरप्राइज। पहाड़ी रास्तों से अनजान मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। हालांकि लोगों ने मना किया कि रात को मत जाइए... तो थोड़ा डर लगा पर 'शहरी जेल' से भागेे घुमक्कड़ ये मानते कैसे। तो हम एक कार लेकर भवाली पहुंचे। तब तक रात के आठ बज गए। वहां लगभग सन्नाटा, कोई वाहन ही नहीं। अब क्या किया जाए? यही सोच रहे थे कि महादेव ने कृपा की और एक सरकारी मार्शल गाड़ी हमारी ओर आती दिखी। रोहित ने हाथ दिया और वो रुक गई। चालक अपने अफसर को नैनीताल छोड़कर रानीखेत लौट रहा था। बस फिर क्या, हम गाड़ी पर सवार हो लिए और निकल पड़े।
थोड़ी देर के बाद ही दिनभर की थकान मुझपर तारी हो गई। पहाड़ के घुमावदार रास्तों पर झूले की तरह झूलती गाड़ी में मैं कब नींद के आगोश में चला गया पता नहीं। रात करीब 11 बजे रोहित ने जगाया। कुछ देर में ही गाड़ी रुकी और हम उतर गए। वहां घुप्प अंधेरा, हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था।
रोहित ने बताया कि सीपी सिंह सर के घर चल रहे हैं हम लोग। हालांकि हम दिन में हल्द्वानी स्थित उनके घर कार्ड देने गए थे। लेकिन ये मैं तब समझ सका जब मैं उनसे मिला। सिंह सर रानीखेत में एक डिग्री कॉलेज में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर हैं। हल्द्वानी में परिवार रहता है।
ऊंचे-ऊंचे पेड़ों को महसूस करते चल पड़े
थोड़ी देर में दूर टॉर्च जलती दिखी। रोशनी पास आती गई और उसी के साथ सीपी सर भी आ पहुंचे हमारे पास। प्रणाम-नमस्कार के बाद हम चल पड़े सर के डेरे पर। घुप्प अंधेरा, रात जितनी स्याह, आसमान में तारे उतने ही चटक सफेद। तारों का ऐसा तेज तो हमने बचपन में ही देखा था। रास्ता घुमावदार और ऊबड़खाबड़। अंधेरे के बीच बस इतना अहसास हो रहा था कि रास्ते के दोनों ओर ऊंचे-ऊंचे पेड़ खड़े हैं।
अगले पांच-दस मिनट में हम सड़क छोड़कर ककरीले-पथरीले रास्ते पर आ गए। इस रास्ते से जूझते हुए हम एक छोटे से लेकिन बेहद खूबसूरत घर में पहुंचे। वर्जिश के शौकीन सीपी सर यहां अकेले ही रहते हैं। घर में मुगदर और कसरत के अन्य सामान रखे थे। खैर हम हाथ-मुंह धोकर बतकही में जुट गए। इसी बीच रोहित ने ताबड़तोड़ आटा गूंथा और मोटी-मोटी हथपोइया (हाथ की थाप से बनी रोटी) सेंक ली। बातों-बातों में सीपी सर ने राजमा बनाया। हम भोजन कर फुरसत हुए तो सर ने कहा जल्दी सो जाइए सुबह चार बजे उठना है। बगल में हैड़ाखान मंदिर हैं वहां से हिमालय की खूबसूरत चोटियां बहुत साफ दिखती हैं। साथ ही विशेष तारा भी देखेंगे। खूबसूरत सुबह की लालसा लिए थोड़ी देर में ही हम तीनों नींद की आगोश में थे।
हल्के उजाले में खुलने लगा रहस्य
सुबह सीपी सर ने ठीक चार बजे उठाया। हमलोग जल्दी-जल्दी तैयार हुए और निकल पड़े हिम दर्शन के लिए। रास्ता नीचे की ओर जाने से या हिमालय देखने के मेरे उत्साह के कारण ऐसा लगा जैसे मैं बच्चों की तरह उछलते हुए चल रहा हूं। ऊंचे-नीचे रास्तों से होते हुए करीब 10 मिनट में हम मंदिर पहुंच गए। तब तक दूर पहाड़ों की ओट से उजाला झांकने लगा था। अंदाज हो गया कि मेरे सामने जीवन के सबसे सुंदर नजारों का पिटारा खुलने वाला है। थोड़ी देर में मंदिर और आसपास की खूबसूरती की झलक भी दिखाई देने लगी। हम कैमरे और मोबाइल में तस्वीरें उतारने लगे।
मंदिर के बारे में जानकारी जुटाई। पता चला यहां बॉलीवुड के कपूर खानदान से लेकर बरेली गर्ल प्रियंका चोपड़ा तक का आना-जाना लगा रहता है। राजकपूर घर में किसी की शादी होने पर यहां जरूर आते थे। मंदिर परिसर में कई विदेशी भी दिखे जो कभी यहां घूमने आए थे और अब यहीं के होकर रह गए। मुझे तो जलन होने लगी इनसे। पहाड़ की मोहब्बत में ये अपने देश से सबकुछ छोड़ छाड़कर आ गए। अब पहाड़ ने भी इन्हें अपना लिया।
मंदिर के बारे में जानकारी जुटाई। पता चला यहां बॉलीवुड के कपूर खानदान से लेकर बरेली गर्ल प्रियंका चोपड़ा तक का आना-जाना लगा रहता है। राजकपूर घर में किसी की शादी होने पर यहां जरूर आते थे। मंदिर परिसर में कई विदेशी भी दिखे जो कभी यहां घूमने आए थे और अब यहीं के होकर रह गए। मुझे तो जलन होने लगी इनसे। पहाड़ की मोहब्बत में ये अपने देश से सबकुछ छोड़ छाड़कर आ गए। अब पहाड़ ने भी इन्हें अपना लिया।
धुंध ने नहीं उठने दिया हिमालय से पर्दा
मंदिर में सीमेंट का अर्ध चंद्राकार स्थान बनाया गया है। उसपर सामने दिखने वाली हिमालय की मनोरम चोटियों के नाम, ऊंचाई और अन्य जानाकारियां अंकित हैं। उजाला बढ़ रहा था लेकिन धुंध के कारण ज्यादा दूर तक नहीं दिख रहा था। पता चला कि पंजाब-हरियाणा से उठी धुंध तराई से होती हिमालय की ओर बढ़ रही है। इसके कारण चोटियां दिख नहीं रही हैं। अरे ये क्या... इतने पास आकर भी हिमदर्शन से वंचित रह जाना बहुत निराश कर रहा था। खैर हम कर भी क्या सकते थे...
क्या कह रहे हैं... रात इसी रास्ते गुजरे थे
मंदिर परिसर में घूमने और तस्वीरें उतारने के बाद सीपी सर हमें अपने कॉलेज ले गए। जब वहां पहुंचे और पता चला कि इसी रास्ते से रात हमलोग गए थे तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। देवदार के शानदार पेड़ देख मन प्रफुल्लित हो गया। थोड़ी देर बाद वहां से लौट आए। घर पर हम बात कर ही रहे थे कि तभी रोहित के मोबाइल की घंटी बजी। फोन पर दूसरी ओर हमारे प्रिय लेखक अशोक पांडे जी थे। अरे हां वही ‘कबाड़खाना' वाले। उन्होंने कहा कि थोड़ी देर में आ रहा हूं, हम हैड़ाखान मंदिर के बगल टूरिस्ट रेस्ट हाउस के सामने उनसे मिलें। हमलोगों को वापस भी निकलना था तो सीपी सर से विदा लेकर चल पड़े।
अशोक पांडे जी का यादगार साथ
रानीखेत में मेरे साथ सीपी सिंह सर (बीच में) और फोटो जर्नलिस्ट रोहित उमराव (दाएं)। |
अशोक पांडे जी का यादगार साथ
अशोक पांडे जी के आने से पहले टूरिस्ट रेस्ट हाउस के सामने की एक दुकान पर हम मैगी का नाश्ता निपटा चुके थे। चाय अशोक जी के आने पर पीना तय हुआ। थोड़ी देर में अशोक जी भी आ गए। इससे पहले एक बार बरेली में उनसे मैं मिला था। कमाल की शख्सियत। उन्हें देखकर भाजपा नेता प्रकाश जावडे़कर जी याद आ गए (मेरी नजर में दोनों का चेहरा काफी मिलता है)। दुकानदार चाय लाया पर अशोक जी ने पीने से मना कर दिया और खुद दुकान के बाहर सिगरेट धौकने लगे। इधर हमारी चाय खत्म हुई और उधर पांडेजी की सिगरेट। दुकान का हिसाब कर पांडेजी की कार में हम रानीखेत बाजार तक के लिए सवार हो गए। रास्ते में अशोक जी को पता चला कि मैं इलाहाबाद का हूं तो उन्होंने वहां के अपने बड़े मजेदार संस्मरण सुनाए। ऐसा लगा कि मैं नहीं वे पक्के इलाहाबादी हैं। उनकी भाषा, अंदाज, संप्रेषण सब कुछ गजब का। खैर... यह साथ ज्यादा देर तक नहीं रहा।हमारा गंतव्य आ चुका था। कार रोक हमें फिर पहाड़ों पर आने की नसीहत देते हुए अपनी शानदार यादें छोड़कर अशोक जी चले गए। वहां से हम शेयरिंग कार लेकर दोपहर करीब दो बजे हल्द्वानी आ गए और बस से बरेली के लिए निकल पड़े। शाम पांच बजे बरेली में इज्जतनगर रेलवे स्टेशन के सामने हमने बस छोड़ दी। पैदल रूम पर पहुंचे, बैग रखा और बाइक उठाकर अपने ऑफिस निकल गए।
पहाड़ की अमिट स्मृतियां
उत्तराखंड से लौटने के बाद कई दिनों तक पहाड़ को मैं जरा भी नहीं भूला। बार-बार अपना संकल्प दोहराता रहा कि जल्द ही पहाड़ फिर आऊंगा। नई जगह, नए लोगों के बीच। इसबार किसी प्रसिद्ध जगह नहीं बल्कि पहाड़ के सुदूर गांव में। किसी पहाड़ी परिवार के बीच रुकूंगा। उनके समाज को और करीब से जानूंगा। पहाड़ को और ज्यादा जीने की कोशिश करूंगा।
शेष आगे...
शानदार भैया
ReplyDeleteBahut badhiya anubhav raha aapka
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteएक सांस में पढ़ गया हूँ। आपने पहाड़ पर ले जाकर छोड़ दिया। डूबकर लिखा है आपने।
ReplyDeleteअभी कहां, जल्द ही आप भी हमसफर होंगे।
DeleteBehtareen hai bhai ka safar
ReplyDeleteKhud ko jod kr pdhta gya
शुक्रिया।
Deleteबहुत अच्छे भैया
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteतपते वैशाख में तृप्त कर गया आपका लिखा। लगा कि अभी ही सामान पैक कर निकल लें। रोहित भाई की भी याद दिला दी आपने। घूमते रहिए। लिखते रहिये भाई। यायावरी जिंदाबाद, जिंदगी आबाद
ReplyDeleteभाई जिंदगी को कई बार समझने की कोशिश की। पर ये है कि हर बार कहीं और दूर निकल जाती है। एक नया प्रयोजन गढ़ देती है। तमाम उतार-चढ़ाव के साथ अब यही समझ में आया कि यायावर होना ही जिंदगी है। देखते हैं कहां तक निभा पाता हूं।
Deleteशानदार यात्रा वृतांत। पढ़कर मस्तिष्क में पहाड़ के मनोरम दृश्य जीवंत हो उठे। यह क्रम निरंतर बना रहे।
ReplyDeleteशुक्रिया। यह क्रम अब बना रहेगा।
DeleteReally nice experience and guide to others who wish to visit hill station
ReplyDeleteशुक्रिया।
Deleteबहुत सुंदर चित्रण अनुराग जी, उम्मीद है ये शुरुआत अपनी निरंतरता को बनाये रखते हुए नित नई उचाईयों को छुएगी।
ReplyDeleteशुभकामनाएं।
शुक्रिया। कोशिश रहेगी निरंतरता बनी रहे।
Deleteशानदार
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