बाघ सम्मोहक छवि वाला मेरा सबसे पसंदीदा जानदार, शानदार वन्य जीव है। बचपन से प्रकृति, पहाड़, जंगल और वन्य जीवों ने खासा आकर्षित किया। बरेली रीजन में जॉब के दौरान खीरी के दुधवा और पीलीभीत के टाइगर रिजर्व जैसे दो बड़े जंगलों की खबरें रोज का हिस्सा बन गई हैं। गाहे बगाहे बरेली के देहात क्षेत्रों से भी बाघ, तेंदुए और हिरनों की खबरें आती रहती हैं। इन दिनों अधिकतर खबरें बाघों के हमले की आ रही हैं। इन विडालवंसियों के व्यवहार को देखकर लगता है कि उनका हमला स्वाभाविक नहीं है। मानवीय दखल, जंगल की घटती सीमा से उत्पन्न खीझ है जो उन्हें आक्रामक बना रही है। टाइगर के हमलों के पैटर्न पर नजर डालें तो समझना आसान होगा। हाल फिलहाल की पीलीभीत की घटनाओं को ही ले लें। बीते तीन महीनों में पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे गावों में बाघों के हमले में छह लोगों ने जान गवाईं। कई घायल भी हुए।
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पीलीभीत के गजरौला में इनसानों पर हमले के बाद शोर कम होने पर नहर से पानी पीकर आराम करता बाघ। |
जंगल से सटे गांवों का ‘केन हाईवे’ बाघों को मुहैया कराता है सुरक्षा
65 से ज्यादा बाघों वाले पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल की सीमा से छूती बेबी कॉलोनी, गोयल कॉलोनी, गजरौला इलाके में बाघ अक्सर दिख जाते हैं। सीधी सी वजह ये है कि जंगल से सटे गांव गन्ना बाहुल्य हैं। यहां गन्ने के खेत बाघों को आसान और सुरक्षित ‘केन हाईवे’ मुहैया कराते हैं। जंगल के ऊंचे घांस जैसा गन्ना बाघों के छिपने और शिकार करने के लिए समुचित अवसर देते हैं। इसी क्रम में वे कई बार ग्रमीणों के संपर्क में आ जाते हैं। हालांकि मेरा मानना है कि जितना बाघों का मूवमेंट है उस हिसाब से उनकी मानवों से भिड़ंत की घटनाएं कम हैं। इसे बाघों का हमपर रहम कह सकते हैं। क्योंकि विशषज्ञों की माने तो प्रकृति प्रदत्त खूंखार प्रवृत्ति के बावजूद बाघ इनसानों से बचते हैं। अब जब इनसान ही बार-बार उनके रास्ते में आते हैं तो मजबूरी उन्हें हमले के लिए प्रेरित करती है। मजबूरी इसलिए कही जा सकती है क्योंकि यदि भूख हमले का कारण होती तो निश्चित ही जंगल में उनके लिए पर्याप्त शिकार उपलब्ध हैं। वहीं आसपास के गांवों में पशु भी बहुतायत में हैं। सबसे पहले वे पशुओं को ही खत्म करते। हालांकि पशुओं पर भी हमले की घटनाएं होती हैं लेकिन वे अधिकतर तेदुंओं द्वारा होती हैं। सोशल मीडिया पर अक्सर वायरल होते वीडियो में हम बाघों को उकसाने वाली कारतूतें आसानी से देख सकते हैं।
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पीलीभीत टाइगर रिजर्व से सटे गजरौला इलाके में वनकर्मियों पर हमलावर बाघ। |
फरवरी, मार्च और अब अप्रैल में बाघों के हमले
फरवरी में गजरौला के गांव बैजूनगर में एक व्यक्ति को बाघ ने मार डाला। इसके पांचवे दिन गांव विधिपुर में दूसरे व्यक्ति का शिकार किया। 22 मार्च को इसी क्षेत्र में माला कॉलोनी में बाघ ने खेत पर काम कर रही एक महिला की जान ले ली। 29 मार्च को इसी कॉलोनी में एक और ग्रामीण को बाघ ने निवाला बना लिया। इसके बाद अप्रैल की शुरुआत में गांव रिछौला में बाघ ने दो लोगों को एक साथ मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद वन विभाग की टीम ने डॉट के जरिए बेहोश कर बाघ को पकड़ लिया था। हालांकि अब फिर से बाघ के हमले होने लगे।
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वनकर्मियों पर हमले के दौरान ट्रैक्टर के बेनट पर बैठा बाघ। फोटो वाया व्हाट्सएप |
वनकर्मी की आंखों में आंखें डाल ट्रैक्टर के बोनट पर बैठा बादशाह
पीलीभीत के गजरौला क्षेत्र में शिवनगर जरा लिंक मार्ग पर एक मई को बाघ ने तीन लोगों पर हमला किया और बाद में देर शाम लोहे के जाल से घिरे ट्रैक्टर लेकर पहुंचे वनकर्मियों पर भी हमला कर दिया। उसकी फोटो और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। वीडियो और तस्वीरें देखकर यह साफ लगता है कि खीझ, घबराहट, भीड़ और शोर ने बाघ को आक्रामक कर दिया। ट्रैक्टर के बोनट पर बैठा हृष्टपुष्ट बाघ और उसका अंदाज इसकी ताकीद करता है। बाघ के जबड़ों का घेरा और पंजे की चोट भयावह होती है। सेंकेडों में वह शिकार की गर्दन दबोच कर उसे निष्क्रिय करने का सामर्थ रखता है। उसकी लंबी और चौड़ी जीभ कांटेदार मजबूत तंतु से युक्त होती है जो हड्डी से मांस एक फेरे में ही साफ कर सकती है। पंजों के करीब तीन इंच लंबे नाखून पलक झपकते ही शिकार के चीथड़े उड़ा सकते हैं। ऐसे में किसी पतले दुबले इनसान की उसके सामने बिसात ही क्या। लेकिन बाघ बस वनकर्मी की आंखों में आंखें डालकर चेतावनी भरी गर्जना के साथ बड़ी चपलता से झाड़ियों में ओझल हो गया। (हालांकि डीडी नवीन खंडेलवाल के अनुसार बाघ को जंगल में खदेड़ा गया था।)
हमें बाघों के आवास का सम्मान करना चाहिए
73 हजार हेक्टेयर में फैला हुआ पीलीभीत टाइगर रिजर्व उत्तराखंड के बॉर्डर सुरई, नेपाल के शुक्ला फांटा सेक्चुरी, पूरब दिशा में लखीमपुर की तरफ किशनपुर वाइल्ड लाइफ सेक्चुरी और शाहजहांपुर के मंडनपुर सोशल फारेस्ट्री तक फैला हुआ है। पीलीभीत टाइगर रिजर्व में महोफ, बाराही, हरीपुर, दियूरिया और माला पांच रेंज हैं। यहां बाघ अक्सर दिखते हैं। पीलीभीत में टाइगर रिजर्व इसीलिए बनाया गया ताकि बाघों को संरक्षण मिले और वे अपने प्राकृतिक आवास में स्वच्छंद होकर प्रकृति के संतुलन को बल देते रहें। परंतु मानव के लालच और महात्वाकांक्षा ने बाघों सहित सभी वन्य जीवों के लिए मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। इनसानों की तरह ही बाघ भी अपने आवास क्षेत्र पर किसी का कब्जा पसंद नहीं करता। टाइगर रिजर्व में मानव दखल पहले से बढ़ा है। इसके कारण बाघों की शांति छिन रही है। हमें बाघों के आवास का सम्मान करते हुए अपनी दखलअंदाजी को बंद करना चाहिए। अन्यथा नतीजा विध्वंसकारी हो जाएगा।
Very nice
ReplyDeleteधन्यवाद।
DeleteAaj k banawti Jeevan m sahi aaina dikhaya aapne,bahut bahut dhanyawad.
ReplyDelete👌👌😊
DeleteTrue line 👌👌👌👌 nice 👍👍👍👍
ReplyDeleteधन्यवाद।
DeleteReality of truth.....
ReplyDeleteधन्यवाद।
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