अनुराग शुक्ला
आपके पास एक दिन का भी समय हो और आप भोपाल जैसे खूबसूरत शहर में हों तो थोड़ा सा समय निकालिए। यकीन मानिए आपका दिन बन जाएगा। झील, मंदिर, कई संग्रहालय, विज्ञान भवन, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान, शौर्य स्मारक और बहुत कुछ है यहां। इसबार बात वन विहार राष्ट्रीय उद्यान की...
वैसे मैं तो भोपाल बहुत बार जा चुका हूं। कभी पढ़ाई, दोस्तों की शादी तो कभी बेटियों के शूटिंग मैच के कारण। इस बार भी बेटियों का इंडियन टीम का ट्रायल था। 20 मार्च को पहला मैच था और 18 को होली। ऐसे में 17 को बरेली से अपने घर प्रयागराज पहुंचे। वहां से 19 को कामायनी एक्सप्रेस से अगले दिन सुबह भोपाल पहुंच गया। स्टेशन पर मित्र डॉ. आशाद अंसारी लेने आए। उनके साथ उनके रूम पर पहुंच गए। 12 बजे से मैच था तो तैयार होकर एमपी स्टेट शूटिंग रेंज पहुंचे। ऐसी रेंज और व्यवस्था अपने यूपी में तो कल्पना मात्र है। दो घंटे में मैच खत्म हुआ तो दोपहर 02 बजे से खाली हो गए।
भोपाल में वनविहार छोड़कर करीब-करीब सभी जगह घूम चुका था। तो अबकी बार वन विहार जाना तय हुआ। माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के पास स्थित शूटिंग रेंज से ऑटो कर हम पहुंच गए लेक व्यू के पास बने वन विहार में। वहां साइकिल यात्रा का विकल्प देखकर आंखें चमक गईं। कई साल हो गए थे साइकिल चलाए पर हाल ही में हुए फ्रैक्चर के कारण दाहिने हाथ में प्लास्टर होने से मन निराश हो गया। लेकिन वहां रेंजर साइकिल भी थी जिसके हैंडल पर ऊपर पकड़ने के लिए विकल्प था। तो निर्णय साइकिल के पक्ष में गया। प्रति व्यक्ति 20 रुपये वन विहार में प्रवेश के और 20 रुपये साइकिल के। मैंने और दोनों बेटियों ने किराए पर साइकिल ली। ऊंचा नीचा करीब सात किलोमीटर का साइकिल ट्रैक, एक तरफ भोपाल की प्रसिद्ध भोजपाल झील से आती ठंडी हवा और दूसरी तरफ पलास के फूलों से लकदक पहाड़। ऐसा मनोरम दृश्य देखकर हाथ का दर्द मानों कही छूमंतर हो गया। कुछ दूर पर चलते ही बाएं हाथ पर लकड़बग्घों (हमारे प्रयागराज में बिगवा) का बाड़ा दिखा। बेटियों ने पहली बार लकड़बग्घा देखा।
यहां से चिड़ियों की चहचहाहट के बीच प्राकृतिक दृश्यों को निहारते हुए हम तीनों आगे बढ़े तो कुछ दूर पर भालुओं का बाड़ा आ गया। वहां रुककर थोड़ा सुस्ताने के बाद आगे बढ़े। आगे तेंदुआ देखा। कुछ दूर पर अपने बाड़े में बब्बर शेर को सोता देख हम सभी रोमांचित हो गए। दरअसल अभी तक हमने चिड़याघर में वन्यजीवों को देखा था जो पिजड़ों में बंद होते हैं। पहली बार खुले में उन्हें विचरते देखकर काफी अच्छा लगा। मुझसे ज्यादा बेटियां खुश थीं। वजह साइकिल की सवारी करते हुए इतने खूबसूरत नजारे देख रही थीं। किस्मत अच्छी थी तो आगे बाघ भी चहलकदमी करते दिख गया। इनके अलावा विभिन्न तरह के कछुए, जंगली सूअर, मगरमच्छ, कई तरह के सांप, हिरण और पक्षी दिखे। इसी रास्ते से वापस लौटे। शानदार तस्वीरें लीं और करीब दो घंटे में सात किलोमीटर का पैसा वसूल साइकिल ट्रैक पूरा किया। कुलमिलाकर शानदार समय बीता। आगे कुछ दिन और रुकना था तो अन्य स्थानों के लिए योजना बनाकर हम वापस मित्र के रूम पर चले गए।
भोपाल में कम समय में भी बहुत कुछ आसानी से देखा जा सकता है। अन्य शहरों के मुकाबले यहां खर्च भी कम है। इसबार पता चला कि आप यहां किराए पर साइकिल लेकर कहीं भी घूम सकते हैं। ये व्यवस्था नगर निगम की ओर से है। एक स्थान से किराए पर साइकिल लीजिए, यात्रा कीजिए और जहां मर्जी हो वहां छोड़ दीजिए। नगर निगम के लोग खुद ही साइकिल कलेक्ट कर लेंगे। ये अच्छी पहल दिखी। आपमें से बहुत साथी यहां गए होंगे और घुमक्कड़ी भी की होगी। जो साथी नहीं गए हैं वे जब भी जाएं, जितना भी समय मिले वहां जरूर घूमें। अच्छा लगेगा। धन्यवाद...
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